तेरी दो निगाहें

तेरी ये दो निगाहें क्या कमाल करती हैं
इक बार में मुझसे सौ सवाल करती हैं
जालिम उठ के कभी तो कभी झुककर
रोज दिल के शहर में ये बवाल करती हैं
तिरछी होकर कभी तो जान लेती हैं ये
कभी शर्म-ओ- हया से निहाल करती हैं
अब कोई जिए तो जिए कोई मरे तो मरे
ये कहाँ कब किसका खयाल करती हैं
तेरी ये दो निगाहें क्या कमाल करती हैं
इक बार में मुझसे सौ सवाल करती हैं

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