इक बार हँस कर रोना नहीं चाहता मैं
पाकर तुम्हें अब खोना नहीं चाहता मैं
जिन्दगी दूर होती है तो बेशक हो जाए
दूर तुमसे कभी होना नहीं चाहता मैं
बनाई है खुदा ने खुद जिसे वो मूरत हो तुम
बस गई है जो इन आँखों में वो सूरत हो तुम
लाख कोशिशें करता हूँ इस मगर दुनिया में
जो पूरी होती नहीं कभी वो जरूरत हो तुम
मेरे दिल पे छाए शुरूर की वजह तुम हो
मेरी इस जिन्दगी में नूर की वजह तुम हो
हसीनाएं कहती हैं मैं उनको देखता नहीं
वो क्या जाने मेरे गुरूर की वजह तुम हो
तुम पास हो तो ख्वाहिश अधूरी कैसे होगी
मुझमें और मंजिलों में कोई दूरी कैसे होगी
सब कुछ है मेरे पास तुम्हारे पास रहने से
अगर तुम नहीं तो जिन्दगी पूरी कैसे होगी
चार दिन का मिलना भी कुछ कम तो नहीं
अजी बदले ना ऐसा कोई मौसम तो नहीं
दुनिया न साथ दे तो भी गम न करना
अरे दुनिया बदल गई है बाबू हम तो नहीं
Raj ji,
मैं आपसे परिचित तो नहीं, पर पिछले कुछ समय से आपकी रचनाएं मुझ तक पहुँच रही हैं. आज की यह रचना मैं पूरी तरह पढ पाया. आपके विचार साफ सुथरे और स्पष्ट हैं. अभिव्यक्ति भी अच्छी है. आप पढ़ने की आदत डालें और शब्द सामर्थ्य पर जोर दें तो आपकी रचनाओं में बहुत उत्कृष्टता आ सकती है, चार चाँद लग सकते हैं. आप इस पर विचार करें तो मुझे खुशी होगी. यदि न भाए तो इसे कूडेदान में निस्संकोच डाल दीजिए.
अयंगर
laxmirangam.blogspot.in
बहुत बहुत आभार आपके कीमती सुझाव के लिए।मैं जरूर आपके सुझाव पर अमल करूंगा ।आप सबका आशिर्वाद रहा मैं आगे की रचनाओं में और उत्कृष्टता लाने का प्रयास करूंगा।