ढोल गंवार शूद्र पशु नारी का सही अर्थ क्या है

ढोल गंवार शूद्र पशु नारी ।

सकल ताडना के अधिकारी ।।

लोग इन पंक्तियों को लेकर आपस में लडते रहते हैं और कहते हैं कि रामचरित मानस में से इन पंक्तियों को हटा देना चाहिए। हमने भी कई वीडियो देखे और लेख पढे लेकिन समझ नहीं पाया कि क्या यह विरोध उचित है ? मैने सोचना शुरू किया कि अगर मैं एक लेखक हूँ और किसी बडे ग्रन्थ की रचना कर रहा हूँ तो क्या मैं पूरे ग्रन्थ में एक दो पंक्ति ऐसी लिखूंगा जिससे भविष्य में मेरी आलोचना हो या मुझे गालियां मिलें ? मेरे अन्तर्मन से उत्तर मिला .. नहीं। फिर तुलसीदास जी जैसे पारंगत लेखक से ऐसी गलती कैसे हो गई ? थोडी देर के लिए मान लेते हैं कि तुलसीदास जी ब्राह्मण थे तो शूद्रों के लिए कुछ गलत लिख दिया होगा लेकिन इन पंक्तियों में ‘नारी’ शब्द का  भी उल्लेख है जो कि किसी तरह से हजम नहीं हो रहा। अगर तुलसीदास जी ने समस्त नारी जाति के बारे में गलत लिखा तो याद रखिए कि पूरे रामायण में एक कैरेक्टर हैं सीता, जिस पर पूरी रामायण आधारित है और तुलसीदास जी ने सीता जी के बारे में बहुत अच्छी अच्छी बातें लिखी हैं। एक जगह आप किसी नारी के बारे में उच्च कोटि का लेखन करते हैं और उसी ग्रन्थ में आप समस्त नारी जाति को अपमानित करने वाली बात लिखें, यह सम्भव नहीं है। इसलिए मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि उपरोक्त पंक्तियों का जो अर्थ लगाकर लोग विरोध कर रहे हैं वह सही नहीं है। गलती तुलसीदास जी से हुई है या हमसे हो रही है उनकी लिखी पंक्तियों का अर्थ समझने में ? फिर मैने सोचना शुरू किया और जो पाया उससे तो मैं अचंभित ही हो गया कि लोग इतनी बडी गलतफहमी का शिकार कैसे हो सकते हैं ? आइए आपको बताते हैं कि हमने क्या पाया ?

 

अगर आपने हिन्दी व्याकरण पढा होगा तो अलंकार जरूर पढा होगा । अलंकार के प्रकारों की बात करे तो एक अलंकार होता है श्लेष अलंकार। जब किसी काव्य में एक शब्द एक ही बार आए परंतु उसके अर्थ काव्य में आए शब्दों या कैरेक्टर के हिसाब से अलग अलग हो तो वहां श्लेष अलंकार होता है जैसे :

 

चरन धरत चिंता करत चितवत चारहुँ ओर।

सुबरन को खोजत फिरत कवि व्यभिचारी चोर।।

 

उपरोक्त वाक्य में ‘सुबरन’ शब्द का प्रयोग सिर्फ एक बार ही हुआ है लेकिन इसका अर्थ पंक्तियों में प्रयोग हुए तीन कैरेक्टर कवि, व्यभिचारी और चोर के लिए अलग अलग है जैसे,

कवि के लिए सुबरन का अर्थ है ‘ सुन्दर वर्ण’

व्यभिचारी के लिए सुबरन का अर्थ है ‘ सुन्दर स्त्री’

और चोर के लिए सुबरन का अर्थ है ‘सोना’

 

उसी तरह ….

 

ढोल गंवार शूद्र पशु नारी ।

सकल ताडना के अधिकारी ।।

 

इन पंक्तियों में भी श्लेष अलंकार है क्योंकि यहाँ ‘ ताडना’ शब्द एक बार आया है लेकिन पंक्ति में आए पांचों कैरेक्टर ढोल, गंवार, शूद्र, पशु और नारी के लिए इसके अर्थ अलग अलग है जैसे:

 

ढोल के लिए ताडना का अर्थ है पीटना/चोट करना

(ढोल को पीटे जाने का अधिकार है क्योंकि जब तक उसे पीटा नहीं जाएगा, उस पर चोट नहीं की जाएगी तब तक उसमें से स्वर या आवाज नहीं निकलेगी और बिना आवाज के ढोल किस काम का, इसलिए ढोल के गुण को बाहर लाने के लिए उस पर चोट करनी ही होगी।)

 

गंवार के लिए ताडना का अर्थ है ‘शिक्षा’/ ‘ज्ञान’

(गंवार का अर्थ है अज्ञानी या अशिक्षित।  गंवार को अधिकार है कि वह शिक्षा प्राप्त करें क्योंकि जब तक वह शिक्षित नहीं होगा तब तक उसे ज्ञान नहीं होगा कि उसके लिए क्या उचित है क्या अनुचित, क्या सही है क्या गलत। जीवन को कैसे जीना है या किसके साथ कैसा व्यवहार करना है इसके लिए गंवार को शिक्षा अवश्य प्राप्त होनी चाहिए।)

 

शूद्र के लिए ताडना का अर्थ है ‘तरना/तर जाना’

(जब यह पंक्तियां लिखी गई थी तब शूद्रों की स्थिति बहुत ही दयनीय थी, आज भी है लेकिन उस समय की अपेक्षा कम है। लोग उन्हें अछूत समझते थे और समाज का निम्न या घटिया हिस्सा मानते थे तो इन पंक्तियों के माध्यम से कहा गया कि शूद्रों को भी तरने का अधिकार है ,उन्हें भी अछूत से पवित्र होने का अधिकार है,उन्हें भी औरों की तरह जीवन जीने का अधिकार है,उन्हें भी समाज में वही सम्मान मिलना चाहिए जो बाकी वर्णों को मिलता है। वो कहते हैं न कि गंगा नहाकर मैं तो तर गया यहां शूद्रों के लिए भी ताडना का अर्थ ‘तरना’ है। )

 

पशु के लिए ताडना का अर्थ है ‘देखना/नजर रखना’

(पशुओं का स्वाभाव तो आप सब जानते ही है उन्हें सिर्फ भोजन और पेट भरने से मतलब होता है , अब किसी का नुकसान हो रहा है कि किसी को हानि पहुंच रही है इससे उन्हें मतलब नहीं होता। इसलिए पशुओं को अधिकार है कि उन पर लोग नजर रखें कि कहीं किसी की फसल को हानि न हो , किसी के घर का भोजन खराब न कर दें ये पशु। वो आजकल कहते हैं न कि ताडते रहो कहीं कोई पशु खेत में न घुस जाए।)

 

नारी के लिए ताडना का अर्थ है ‘निहारना’/देखा जाना’

( नारी ईश्वर की बनाई हुई एक सुन्दर रचना है। इसलिए नारी निहारने यानी देखे जाने की अधिकारी है। एक स्त्री सजती है संवरती है सिर्फ इसलिए कि उसके प्रेमी या पति, दोस्त, रिश्तेदार और समाज उसकी सुन्दरता देखें और उसकी तारीफ करें। अगर कोई देखने वाला न हो तो स्त्री की सुन्दरता किस काम की ? इसलिए स्त्रियां ताडने (देखने) की अधिकारी हैं।)

 

दोस्तों, व्याकरण की दृष्टि से इन पंक्तियों का यही अर्थ होगा अब यदि लोग गलतफहमी से बाहर आना ही न चाहे या तर्क ही न करना चाहे, समझना ही न चाहें तो इसमें कोई कुछ नहीं कर सकता।

 

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