माँ लक्ष्मी किसके घर जाती हैं

एक शहर में हीरामणि नाम का एक सेठ रहता था। उसके पूर्वज उसके पास इतनी जमीन और सम्पत्ति छोडकर गए थे कि सात पीढियों तक उसे काम करने की जरूरत ही न पडे। उसका व्यापार भी इतना बडा था कि हजारों नौकर चाकर हमेशा उसकी सेवा और कामों में लगे रहते थे। इस तरह के बिलासी जीवन का वह इतना आदी हो गया कि उसका कोई भी काम करने का मन ही नहीं होता था। दौलत का घमण्ड तो इतना था कि वो अपने आपको भगवान से भी ऊपर समझता था। बात बात पर रिश्तेदारों और पडोसियों से झगडा कर लेना उसकी आदत सी बन गई थी। व्यापार में जो भी पैसा आता उसे वह अपनी अय्याशी में खतम करता। कभी कभी तो वह इतना आलसी हो जाता कि व्यापार का हिसाब किताब ही नहीं करता।

हीरामणि के घर पर एक नौकर रहता था जिसका नाम मोहन था। वह बहुत ही ईमानदार और कर्मठ इंसान था। वह हमेशा पूरी ईमानदारी से अपना काम करता और पूरा पूरा हिसाब अपने हीरामणि सेठ को दे देता। हीरामणि के जितने भी नौकर चाकर थे उनमें सबसे काबिल मोहन ही था। वह सुबह अपने काम पर आ जाता और शाम तक हीरामणि सेठ की हवेली, गाडियों और अन्य चीजों की साफ सफाई करता और व्यापार का भी थोडा बहुत हिसाब किताब देख लेता क्योंकि वह पढा लिखा भी था। उसे जितना भी पैसा मिलता उसका कुछ हिस्सा वह गरीबों को दान जरूर करता था। अगर कोई भी असहाय उसके पास मदद को आता तो अपनी हैसियत के हिसाब उनकी मदद कर देता था। उसके इसी सरल स्वाभाव की वजह से लोग उसकी बहुत इज्जत करते थे।

धन की देवी माता लक्ष्मी बैकुंठ धाम से यह सब देख रही थी और सोच रही थी कि जिसके ऊपर मेरी दया मेरा आशीर्वाद है वो सेठ हीरामणि तो मेरी कदर ही नहीं कर रहा है उल्टा मेरा दुरुपयोग ही कर रहा है। मेरे दिए गए धन का इस्तेमाल वह अच्छे और आगे बढ़ने वाले कार्यों में न लगाकर अपनी बुरी आदतों पर खर्च रहा है। दूसरी तरफ एक नौकर मोहन जिसके पास कुछ भी नहीं है , जिससे घर मैं कभी गई ही नहीं हूँ जिससे मेरा रिश्ता ही नहीं है वह मेरी कितनी इज्ज़त और सेवा कर रहा है। क्यों न मैं ऐसा करूँ कि सेठ हीरामणि का घर छोडकर मोहन के ही घर चलू। अरे जो दूसरे के घर की लक्ष्मी की सेवा इतनी ईमानदारी और लगन से कर रहा है तो वो अपने घर की लक्ष्मी की सेवा तो और भी अच्छे से करेगा।  लक्ष्मी जी यह सब सोच ही रही थी कि भगवान विष्णु मुस्कुराए।माता लक्ष्मी ने जब उनकी मुस्कुराहट का कारण पूछा तो विष्णु जी बोले, देवी आप जो सोच रही हैं वह विचार तो उत्तम है परंतु यह सम्भव कैसे होगा यदि कर्म ही उस लायक न हों। आपका भक्त मोहन ईमानदार तो है पर उसके कर्म ऐसे नहीं है कि वह धनवान बन सके। उसके कर्म के अनुसार तो वह उतने के ही लायक है जितना मूल्य उसके काम के लिए उसे मिलता है। बाकी रही बात हीरामणि की तो उसके पूर्वजों ने अच्छे कर्म किए थे जिसका फल हीरामणि आज भोग रहा है। हाँ यह सच है कि हर उत्थान का पतन होता है और हीरामणि का भी अब पतन नजदीक है परंतु हीरामणि के घर से निकलकर मोहन के घर जाने का रास्ता अभी तो नहीं बना है देवी।

अब लक्ष्मी जी परेशान हो गई और बोली, प्रभु अब आप ही कोई उपाय बताएं जिससे कि मैं मोहन पर अपनी कृपादृष्टि डाल सकूं। भगवान विष्णु बोले, देवी उसके लिए आपको देवी सरस्वती की सहायता लेनी पडेगी। देवी सरस्वती जब मोहन को ज्ञान देंगी और सद्बुद्धि देंगी तो वह जीवन में वह कर्म जरूर करेगा जो उसे धनवान बनाएगा। अब लक्ष्मी जी प्रसन्न हो गई और उन्होंने तुरंत ही देवी सरस्वती से इस बारे में बात की। इसके बाद देवी सरस्वती ने मोहन के दिमाग में व्यापार करने की बुद्धि डाल दी। अब समस्या यह थी कि व्यापार करने के लिए भी धन की आवश्यकता होगी तो मोहन कैसे व्यापार करेगा उसकी तनख्वाह तो बहुत ही कम है। मोहन की बुद्धि अब तलवार की धार जैसी तेज चलने लगी थी क्योंकि माता सरस्वती का हाथ अब उसके सर पर था। मोहन ने अपनी तनख्वाह से कुछ पैसा जमा किया और कुछ पैसा दूसरे सेठ से ऋण के रूप में लिया और छोटी सी दुकान खोल ली।

इसके बाद तो माता लक्ष्मी का खेल ऐसा शुरू हुआ और मोहन की दुकान का सामान हर दूसरे दिन ही बिक जाता और ऐसा करते करते इतना लाभ हुआ कि मोहन ने जो ऋण लिया था उसे चुकता किया और साथ में दस दुकाने और खोलकर आदमियों को रख दिया। इस तरह कुछ ही सालो में मोहन , सेठ मोहनदास बन गया। उसके पास इतनी दौलत आ गई कि उसने सेठ हीरामणि की कई कम्पनियों को खरीद लिया। इधर हीरामणि अपनी दारू, जुआ, और अय्याशी के शौक को पूरा करने के लिए एक एक करके अपनी सारी जमीन जायदाद बेचने लगा  और कुछ ही समय बाद उसका सब कुछ लुट गया और मोहनदास शहर का सबसे अमीर सेठ बन गया।

इतना अमीर होने के बावजूद मोहनदास ने कभी भी दौलत का घमंड नहीं किया और अपने आपको माता लक्ष्मी की सेवा में हमेशा लगाए रखा। मोहनदास की ईमानदारी और कर्मठ स्वाभाव के चलते माता लक्ष्मी हमेशा उसकी सहायक रही।

तो दोस्तों, इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि यदि हम जीवन में अच्छा और आगे बढने वाला कर्म करते हैं, दूसरों की सहायता करते हैं, दान देकर गरीबों और असहायों की मदद करते हैं तो ईश्वर जरूर प्रसन्न होता है और जब हम पर ईश्वर की कृपा होती है तो हमारी बुद्धि भी सही तरीके से काम करती है और हमारे द्वारा लिया गया फैसला सही साबित होता है।

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