माँ सावित्रीबाई फुले की कहानी

चलिए हम आज त्याग संघर्ष की बात बताते हैं

माँ सावित्री बाई फुले की कथा सुनाते हैं…

बात है तब की जब भारत में था बस अत्याचार

ना हक था महिलाओं को ना पढने का अधिकार

चौदह बरस में बच्चियों के होते थे पीले हाथ

दुर्भाग्य से विधवा हुई तो ना देता था कोई साथ

विधवाओं का फिर विवाह सब पाप समझते थे

सोचो बेसहारा बच्चियों के दिन कैसे कटते थे

ऊपर से कुछ ऊँचे लोगों की सोच भी मैली थी

जिससे समाज में छुआछूत की गन्दगी फैली थी

जब जातपात और भेदभाव ने अपना चरम छुआ

तब अठरह सौ इकतीस में इक देवी का जनम हुआ

शिक्षा के लिए संघर्ष में ही बीता बचपन सारा

ये पढ न सके लोगों ने पत्थर कीचड तक मारा

इस देवी ने संघर्ष किए और तोडे  झूठे रिवाज

आगे बढकर शिक्षा ली और बस देखता रहा समाज

शिक्षित होकर पहला बालिका विद्यालय खुलवाया

और महिलाओं को पढने का अधिकार भी दिलवाया

आसान नहीं थी आगे फिर माँ सावित्री की राह

संघर्ष किया और करवाया फिर विधवा पुनर्विवाह

ऐसी थी माँ सावित्री खुद की खातिर नहीं जिया

दलितों कुचलों के लिए ही सारा जीवन त्याग दिया

चलो आज फिर से इस देवी को हम शीश नवाते हैं

माँ सावित्री के चरण में श्रद्धा सुमन चढाते हैं

तुम भूल न जाओ इसीलिए फिर याद दिलाते हैं

माँ सावित्री के त्याग की मिलकर गाथा गाते हैं

हम कथा सुनाते हैं….

 

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