एक शहर में हीरामल नाम का एक आदमी रहता था। शुरुआत में तो उसका जीवन भी संघर्ष भरा था लेकिन अपनी मेहनत और ईमानदारी की बदौलत उसने खूब सारा धन अर्जित किया और देखते ही देखते वह हीरामल से सेठ हीरामल बन गया। उसका एक दोस्त था राम दयाल। राम दयाल पढा लिखा नहीं था इसलिए उसे कहीं कोई काम नहीं मिल रहा था तो उसने अपने दोस्त हीरामल के घर नौकरी करने की इच्छा जताई । पहले तो हीरामल ने मना कर दिया यह कहकर कि वह उसका दोस्त है तो नौकर की तरह वह राम दयाल को कैसे अपने घर में रख सकता है। हीरामल ने कहा कि मुझसे कुछ पैसे ले लो और कोई दुकान या धंधा शुरू कर लो । राम दयाल ने कहा नहीं मुझे पैसा नहीं चाहिए और मुझे किसी चीज का उतना ज्ञान भी नहीं है कि मैं कोई पढने लिखने या हिसाब किताब वाला कोई काम कर सकूँ। बस मुझे अपने घर में रख लो , घर की देखभाल करूंगा और आपकी सेवा भी। बाकी खर्चे के लिए जो दे दोगे ले लूंगा खुशी खुशी। राम दयाल की जिद के आगे सेठ हीरामल को झुकना पडा और अपने घर रखना पडा इस शर्त के साथ कि वह उसके घर में नौकर की तरह नहीं बल्कि घर के सदस्य की तरह रहेगा।
राम दयाल बडा प्रसन्न हुआ वह शहर हीरामल के घर बीवी के साथ पहुंच गया तो हीरामल ने उसे पास में ही रहने के लिए एक घर दे दिया । अब राम दयाल हर रोज सेठ हीरामल के घर ईमानदारी से काम करता और हीरामल जो भी पगार के रूप में उसे देते चुपचाप ले लेता। समय बीतता गया सेठ हीरामल का विजनेस इतना बढ गया कि उसकी दो चार पीढियां बैठकर खाएं तब भी धन खत्म नहीं होने वाला था या यूं कहिए कि माता लक्ष्मी की कृपा उस पर जमकर बरस रही थी। कुछ सालों में सेठ हीरामल की दो औलादें हुई जिनका नाम था नरेश और उत्तम। राम दयाल को भी पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम उसने कुन्दन रखा। दोनों दोस्तों का परिवार अब पूरा हो गया था और किसी चीज की कोई भी कमी नहीं थी। नरेश और उत्तम के जन्म के कुछ सालों बाद ही सेठ हीरामल की पत्नी का निधन हो गया।
सेठ हीरामल के बेटे जैसे जैसे बडे होते गए दौलत का घमंड उन पर चढने लगा और वो हर बुरी आदत में फँसते गए जिसमें आजकल के अमीरों की औलादें हमेशा लिप्त रहती है। पिता के कमाए हुए पैसे का खूब दुरुपयोग हो रहा था नरेश और उत्तम के द्वारा। वहीं दूसरी तरफ राम दयाल का बेटा अपने पिता को देखकर जिम्मेदारी , वफादारी और ईमानदारी का गुण सीख रहा था। सेठ हीरामल अपने बेटों को लाख समझाने का प्रयास करते लेकिन नरेश और उत्तम शाम को पिता की बात सुनते सुबह भूल जाते और शुरू कर देते अपनी आवारागर्दी और अय्याशी। वहीं राम दयाल सेठ हीरामल की इन्हीं अच्छी बातों को ध्यान सुनता और घर जाकर अपने बेटे को समझाता। एक दिन नरेश और उत्तम ड्रग्स और लडकियों से सम्बंधित केस में जेल चले गए। हालांकि वो जल्दी ही छूट गए क्योंकि सेठ हीरामल अब तक एक जाना माना नाम बन चुका था लेकिन जेल जाने वाली इस घटना ने सेठ हीरामल की चिंता बढा दी। वो परेशान रहने लगे और धीरे धीरे उनका स्वास्थ्य बिगडता जा रहा था। सेठ हीरामल ने राम दयाल से पूछा कि यार नरेश और उत्तम को कैसे सुधारा जाए तो राम दयाल ने कहा कि इनकी शादी करवा दीजिए शायद जिम्मेदारी आने पर सुधर जाएं। सेठ हीरामल ने ऐसा ही किया।
शादी होने के बाद भी जब नरेश और उत्तम नहीं सुधरे तो सेठ हीरामल चिंता की वजह से गम्भीर रूप से बीमार चलने लगे और कुछ ही महीनों में उनकी मृत्यु होगई। पिता की मृत्यु के पश्चात नरेश और उत्तम को कोई भी टोकने वाला नहीं था वो दोनों हाथों से पिता की कमाई हुई दौलत अय्याशी में उडाने लगे। सेठ हीरामल की मृत्यु के बाद से राम दयाल के साथ भी दुर्व्यवहार होने लगा। बात बात पर नरेश और उत्तम उसकी बेइज्जती करते और घर से निकाल देने की धमकी भी देते। अब राम दयाल भी डर डर के काम करने लगे और फिर दो सालों के बाद ही उनकी भी मृत्यु हो गई। राम दयाल की मृत्यु के बाद अब नरेश और उत्तम के घर में कोई काम करने वाला नहीं था। जो नौकर आता भी वो इन लोगों की हरकतों से तंग आकर नौकरी ही छोड देता। कभी कभी तो किसी नौकर को दो चार महीने पगार ही नहीं देते तो बेचारा बिना पगार लिए ही नौकरी छोड देता। अब आलम यह हो गया कि इनके घर कोई काम करने को तैयार ही नहीं था। इसके बाद नरेश ने एक प्लान बनाया और राम दयाल के बेटे कुन्दन को अपने घर बुलाया और कहा कि आज से उसे इनके घर का काम कामकाज देखना है। कुन्दन ने कहा कि भइया मेरी पढाई खराब हो जाएगी मैं अभी काम नहीं कर सकता। तो नरेश और उत्तम ने धमकी देनी शुरू कर दी कि तुम्हारे बाप से हमारे पिताजी का एग्रीमेंट हुआ था कि वह और उसका बेटा हमारे घर नौकर बनकर रहेंगे और इसी शर्त पर तुम्हें घर दिया गया था। तुम्हें हमारे घर काम करना ही पडेगा वरना हम कानून का सहारा लेंगे । जब जेल जाओगे तब पता चलेगा तब करना खूब पढाई।
अब कुन्दन मजबूर हो गया था। फिर उसने हामी भर ली कि ठीक है मैं कल से काम पर आ जाऊंगा। कुन्दन दूसरे दिन से नरेश और उत्तम के घर काम करने लगा। जैसा कि राम दयाल ने उसे संस्कार दिया था वह पूरी ईमानदारी और वफादारी के साथ नरेश और उत्तम के घर काम करने लगा। नरेश और उत्तम कितना भी उसके साथ दुर्व्यवहार करते , दुत्कारते फिर भी वह चुपचाप उनके घर का सारा काम करता, गाडियां धोता , घर की साफ सफाई करता और इन लोगों की सेवा करता। वो कहते हैं न कि इंसान काम करता है तो उसकी कुछ जरूरतें भी होती हैं। कुन्दन की भी जरूरतें बढी , उसे किताबें लेनी थी पढाई करनी थी तो उसने नरेश से पगार की बात की तो नरेश ने साफ मना कर दिया कि उसके पास पैसे नहीं है। कुछ दिन बीते तो उत्तम ने कहा कि नरेश भइया इस कुन्दन को कुछ पैसे दे दिया करो वरना किसी दिन घर छोडकर भाग जाएगा। नरेश को भी लगा कि हां उत्तम सही बोल रहा है । इसलिए नरेश कभी कभी कुन्दन को सौ रूपये तो कभी पांच सौ रूपए दे देता। कुन्दन भी उन पैसों को माथे से लगाता उसके बाद कुछ पैसा खर्च करता और कुछ पैसा आपातकाल के लिए एक गुल्लक में डाल देता ताकि किसी मुसीबत के समय या मां की दवाई के समय उसका उपयोग कर सके।
यह सब कुछ माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु देख रहे थे। कुन्दन को मेहनत करते और नरेश तथा उत्तम की सम्पत्तियों की पूरी ईमानदारी और निष्ठा से देखभाल करते माता लक्ष्मी देखती तो दया से उनकी आंखें द्रवित हो जाती। भगवान विष्णु ने पूछा, ” अरे देवी क्या बात है आप की आंखों में नमी आखिर किसलिए ? क्या आपका कोई भक्त संकट में है ? ” माता बोलीं , ” नहीं नाथ , आप तो देख ही रहे हो मेरे भक्तों का हाल । मैने हीरामल की मेहनत पर प्रसन्न होकर उसे सब कुछ दिया और उसके बेटे सब कुछ लुटा रहे हैं और खुद बेईमानी पर उतर आए हैं और एक निर्बल मजबूर कुन्दन पर अत्याचार कर रहे हैं जबकि कुन्दन सब कुछ सहन कर रहा है और उनकी हर सम्पत्ति की देखभाल पूरी ईमानदारी से कर रहा है। मुझे कुन्दन पर दया आ रही है ।” भगवान विष्णु बोले , ” तो आप कुन्दन पर भी दया कर दीजिए न ।” माता बोलीं , ” हाँ वह तो ठीक है मैं भी उसके घर जाना चाहती हूं । मैं सोच रही हूं कि जो इंसान दूसरे के घर पर मेरी इतनी सेवा और देखभाल पूरी निष्ठा और ईमानदारी से कर रहा है अगर मैं उसके घर जाऊं तो वो तो मेरी बहुत सेवा करेगा। परन्तु प्रभु मैं उसके घर जाऊं कैसे ? मैं उसकी मेहनत और लगन से खुश तो हूँ पर उसका कर्म और ज्ञान अभी अधूरा है । वो तो दूसरों की सेवा ही करता जा रहा है अपने लिए तो कुछ कर ही नहीं रहा है। वो कुछ करें तब तो उसकी तरक्की का रास्ता मैं खोलूँ। हे नाथ आप मेरी मदद करो। मेरे भक्त की मदद करो। मैं देवी सरस्वती से भी आग्रह करूँगी कि उसे बोध कराएं उसे ज्ञान दें कि उसका अपना भी एक जीवन है। “
भगवान विष्णु ने कहा ठीक है देवी मैं आपके इस भले काम में आपका साथ अवश्य दूंगा।
अगले दिन भगवान विष्णु एक मानव रूप में कुन्दन से मिले और उसका मार्गदर्शन किया कि वह अपने बचत किए हुए पैसे से कोई कोई काम धंधा शुरू करे। माता सरस्वती ने भी साथ दिया और कुन्दन की समझ में सब कुछ आ गया। पर कुन्दन ने मानव रूपी भगवान विष्णु से कहा , ” अरे दोस्त मेरे पास बहुत ज्यादा पैसा नहीं है बस कुछ पैसे ही है जो दुख के समय के लिए मैने बचाकर रखे हैं।उसे कैसे खर्च कर सकता हूँ ? ” भगवान विष्णु ने कहा कि कोई बात नहीं जितना है उतना ही पैसा लगाओ, भगवान तुम्हें जरूर तरक्की देगा। इतना कहकर भगवान विष्णु चले गए। कुन्दन के दिमाग में उनकी कही हर बात बैठ गई वह दौडकर गया अपना गुल्लक तोडा तो देखता है कि उसमें तो पैसा ही पैसा है। कुन्दन ने तो मुश्किल से तीन चार हजार रूपये ही इकठ्ठा किए थे पर गुल्लक से लगभग चालीस हजार निकल आए। यह माता लक्ष्मी की कृपा थी। वो कहते हैं न कि माता लक्ष्मी जिसे देती हैं बस देती ही जाती है।
बिना देर किए कुन्दन ने एक छोटी सी दुकान खोल ली। माता लक्ष्मी तो पहले से ही मेहरबान थी उस पर, फिर क्या दिन दूना रात चौगुनी तरक्की शुरू हो गई कुन्दन की। इधर नरेश और उत्तम एकदम कंगाल हो चुके थे। शायद उन्होंने धन का दुरूपयोग किया था इसीलिए माता लक्ष्मी उनसे रूष्ट थी और उनकी सारी सम्पत्ति वापस लेकर कुन्दन के जीवन में भर रही थी। देखते ही देखते कुन्दन , कुन्दन से कुन्दन सेठ बन गया और नरेश तथा उत्तम खाने पीने के मोहताज। नरेश और उत्तम अब कुन्दन के यहां नौकरी करने लगे। कुन्दन समझ गया था कि माता लक्ष्मी उसकी मेहनत और ईमानदारी की वजह से उसके घर आई हैं इसलिए उसने कभी किसी को दुख नहीं पहुँचाया बल्कि जरूरतमंदों की मदद की और असहायों को दिल खोलकर दान दिया। उसके सरल स्वभाव और अच्छे कर्म की वजह से माता लक्ष्मी उसके घर से कभी नहीं गईं।
दोस्तों इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि काम चाहे जो भी हो छोटा हो या बडा उसमें मेहनत, लगन और ईमानदारी दिखाओगे तो माता लक्ष्मी की कृपा हमेशा आप पर बनी रहेगी। कामचोरी करोगे, सौ दो सौ रूपये की चोरी करोगे, दूसरे की सम्पत्तियों को हडपना चाहोगे, दूसरों को दुख देकर धन कमाओगे तो माता लक्ष्मी कभी आपके पास नहीं रूकेंगी, अगर आएंगी भी तो तुरंत वापस भी चली जाएंगी। इसलिए माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा करने के साथ साथ, खुद अच्छे कर्म कीजिए और अपने तथा दूसरों के प्रति ईमानदार रहिए , आपको कभी किसी भी चीज की कमी नहीं होगी।
जय माता लक्ष्मी की।
हैप्पी दीपावली।