तेरे बिन सफर, सफर नहीं

यूँ तो तेरे बगैर भी चल सकता हूँ…. मगर नहीं

तेरे बिन कठिन हैं रास्ते तेरे बिन सफर सफर नहीं

माना कि वक्त कम ही तुझे देता हूँ मैं आजकल

पर तूने कैसे ये कह दिया मुझको तेरी कदर नहीं

बनकर के लफ्ज़ रहती हो मेरी हर शायरी में तुम

कोई दास्तां नहीं मेरी जिसमें तुम्हारा जिकर नहीं

परवाह नहीं है कि रास्ते में काँटे हैं या शोले हैं

तू साथ है तो हमसफर मुश्किल कोई डगर नहीं

यूँ तो तेरे बगैर भी चल सकता हूँ …..मगर नहीं

तेरे बिन कठिन हैं रास्ते तेरे बिन सफर सफर नहीं

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