चाहत का दस्तूर

जिसको चाहो वही आँखों से दूर है
भला चाहत का ये कैसा दस्तूर है
क्यों नहीं मिलती हैं प्यार में मन्जिलें
प्यार दुनिया में क्यों इतना मजबूर है
सुना है इक तरफ प्यार फूलों सा है
तो दूसरी ओर काँटों से भरपूर है
प्यार करके चलो प्यार जिन्दा रखें
वैसे दुनिया तो नफरत में ही चूर है
शर्त है अब जुदाई मोहब्बत में तो
शर्त ये हमको बिल्कुल न मंजूर है
जिसको चाहो वही आँखों से दूर है
भला चाहत का ये कैसा दस्तूर है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *