बन के साया मोहब्बत का हमें घेरती क्यों हो नजर में रहती हो मेरी तो नजरें फेरती क्यों हो गर डर लगता है तुमको मोहब्बत की आग से फिर इस आग को हँस हँस के छेडती क्यों हो माना कि है परहेज तुमको हम इश्क वालों से तो भला हुस्न की ये खुशबुएँ बिखेरती क्यों … Continue reading नजरें फेरती क्यों हो