एक बार नारद जी और भगवान विष्णु में बहस छिड गई। बहस का विषय यह था कि ” जो होना होता है वह अपने नियत समय और नियत स्थान पर ही होता है ।” नारद जी ने कहा कि प्रभु कुछ घटनाएं इस नियम के विपरीत हुई हैं तो यह नियम कुछ ठीक प्रतीत नहीं होता। इसके जवाब में भगवान विष्णु ने कहा कि ऐसी कोई घटना नहीं है जो इस नियम के विपरीत हुई हो । यकीन नहीं आता तो आज ही आप देख लीजिए कि समुद्र के किनारे बैठे उस केकडे को आज शाम चार बजे एक सर्प अपना भोजन बनाने वाला है जो कि उससे सौ योजन की दूरी पर एक जंगल में आराम कर रहा है। अब तो नारद मुनि को और भी गुस्सा आने लगा और बोले , प्रभु यह कैसे सम्भव है यह हो ही नहीं सकता सिर्फ चार घण्टे के अंदर एक सर्प सौ योजन की यात्रा करके केकड़े के पास कैसे पहुंच सकता है या यह केकडा सौ योजन की दूरी कैसे तय करके सर्प के पास कैसे जा सकता है। प्रभु आज तो आपका बनाया यह नियम झूठा साबित होकर ही रहेगा। भगवान विष्णु मुस्कुराते हुए बोले, नही नारद मुनि यह घटना आज घटित होकर रहेगी चाहे तो आप समुद्र के किनारे बैठकर इस दुर्लभ दृश्य को अपनी आंखों से देख सकते हैं। नारद जी ने कहा, उचित है मैं अभी जाकर समुद्र के किनारे बैठता हूँ और देखता हूँ कि कैसे सौ योजन की दूरी पर बैठा सर्प इस केकडे को अपना भोजन बनाता है।
इतना कहकर नारद मुनि पहुंच गए समुद्र के किनारे और ध्यान लगाकर बैठ गए। अब नारद मुनि जी ठहरे थोडे चंचल स्वाभाव के तो एक जगह उनसे रहा नहीं जा रहा था लेकिन वो करते भी क्या आज उन्हें एक ऐसी घटना देखनी थी जो उनकी नजर में होनी सम्भव ही नहीं थी। नारद जी कभी ध्यान लगाकर बैठ जाते तो कभी केकडे को देख आते । ऐसा करते करते घटना की घडी नजदीक आ गई । अब बस कुछ ही क्षण बाकी थे घटना होने में, तो नारद जी ध्यान से उठे और सीधा उस स्थान पर पहुंच गए जहां केकडा रहता था। लेकिन यह क्या केकडा तो नजर ही नहीं आ रहा था। अब नारद जी परेशान, अरे यह कैसे हो गया केकडा कहाँ चला गया, कहीं घटना घट तो नहीं गई। नहीं ऐसा कैसे हो सकता है ? एक काम करता हूँ केकडा तो दिख नहीं रहा है चलकर सर्प को देखता हूँ वह अपने स्थान पर है या वह भी गायब है। अब नारद जी को मन की गति से भ्रमण करने की शक्ति तो प्राप्त ही थी इसलिए अगले ही क्षण वो सर्प के पास पहुंच गए। जैसे ही नारद जी सर्प के पास पहुंचे उनकी धोती में से केकडा गिरा और सर्प ने तुरंत ही उसे खा लिया। समय देखा तो ठीक वही समय था जो भगवान विष्णु ने बताया था। अब नारद जी हक्का बक्का। सोचने लगे कि यह केकडा मेरी धोती में कैसे आया। आंख बन्द करके भूतकाल में गए तो देखा कि जब नारद जी ध्यान लगाकर बैठे थे तभी केकडा रेंगते हुए उनकी धोती में घुस गया था और अपने चंगुलो के सहारे धोती से लटक गया था।
फिर क्या था नारद जी सिर लटकाए पहुंच गए भगवान विष्णु के पास और हाथ जोडकर बोले, प्रभु आपकी लीला आप ही जानो।आप अपनी लिखनी को पूरा करने के लिए किसी को भी माध्यम बना सकते हैं जैसे आज आपने मुझे बनाया। प्रभु अब जाकर मुझे पता चला कि जो कुछ होता है सब आपकी मर्जी से होता है। मेरा आपसे बहस करना और समुद्र के किनारे जाकर आपके नियम को चुनौती देना सब आपकी लीला थी। मैं समझ रहा था कि यह सब मैं कर रहा हूँ बल्कि सच तो यह है कि यह सब आप मुझसे करवा रहे थे।
जय हो प्रभु जी की जय हो।