मुँह की खा के देखो कैसे अब मुँह नोच रहा हूँ मैं इंसान हूँ जंगल काट के आक्सीजन खोज रहा हूँ लिखना था सुन्दर कल लेकिन देखो मेरी नादानी भविष्य के पन्नों पर खुद ही कालिख पोत रहा हूँ मैं इंसान हूँ जंगल काट के आक्सीजन खोज रहा हूँ सपने थे आंखों में कि मंगल … Continue reading जंगल काट के आक्सीजन खोज रहा हूँ