माँ के बराबर कोई नहीं

एक विधवा औरत अपने 17 साल के बच्चे के साथ एक शहर में रहती थी। उस विधवा औरत की एक आँख नहीं थी जिसकी वजह से उसका चेहरा खराब लगता था। उसके बच्चे को उसकी माँ का चेहरा तब तक खराब नहीं लगता था जब तक उसे इस दुनिया और दुनिया वालों की बातों से लेना देना नहीं था लेकिन जैसे जैसे वह बडा होने लगा उसे उसकी माँ खराब लगने लगी।
वजह थी दुनिया के कुछ लोग । लोग उसे अंधी का बेटा कहकर बुलाते और उसे बुरा लगता लेकिन उसने इस बारे मे कभी अपनी माँ से शिकायत नहीं की। एक दिन की बात है जब बेटा अपने स्कूल गया था और अपना टिफिन घर पर ही भूल गया था। अब माँ तो माँ होती है उससे रहा नहीं गया उसने देखा कि अब लंच का समय हो गया है तो टिफिन लेकर अपने बच्चे के स्कूल में पहुंच गई।
उसने अपने बेटे को टिफिन दिया लेकिन स्कूल के अन्य बच्चों और दोस्तों ने उसके बेटे का खूब मजाक उडाया और अंधी का बेटा..अंधी का बेटा कहकर चिढाने लगे। अब बेटे के सब्र का बांध टूट गया और घर आकर अपनी माँ को बहुत बुरा भला कहा और कहा कि तुमको टिफिन लेकर मेरे स्कूल में नहीं आना चाहिए था तुम्हारी वजह से मेरे दोस्त मेरा मजाक उडाते है। माँ खमोश थी चुपचाप सुन रही थी।
उसके बाद बेटा अपनी माँ से खफा खफा ही रहने लगा और सोचने लगा कि बडा होकर वह अपनी माँ को छोडकर कहीं और सेटल हो जाएगा और कभी वापस नहीं आएगा ताकि कोई भी उसकी माँ की वजह से उसका मजाक न बनाए। यह बात उसने अपनी माँ को भी गुस्से में बताई। माँ तो बस अपने बच्चों की खुशी चाहती है तो उसने खूब अच्छे से अपने बेटे को पढाया लिखाया।
और एक दिन उसके बेटे को विदेश में नौकरी मिल गई। बेटे के मन में अब भी माँ का खराब चेहरा खटक रहा था तो उसने वैसा ही किया जैसा उसने सोचा था। वह माँ को छोडकर विदेश चला गया और वहीं पर नौकरी करने लगा। कुछ दिन बाद शादी कर ली और वहीं पर हमेशा के लिए सेटल हो गया। इधर माँ उससे सम्पर्क करने की कोशिश करती रही लेकिन उसने कभी भी ढंग से अपनी माँ से बात नहीं की।
बेटे के इंतजार में कुछ दिन बाद माँ की मौत हो गई और उसके रिश्तेदारों ने इस बारे बेटे को खबर की तो वह फ्लाइट पकडकर अन्तिम संस्कार के लिए आ गया। माँ का अंतिम संस्कार करने के बाद भी उसकी आँखों से आंसू नहीं गिरे , माँ के खराब चेहरे के प्रति इतनी नफरत शायद ही किसी बेटे में हो। वह वापस जाने के लिए तैयार हो ही रहा था कि उसने देखा, आलमारी में सबसे ऊपर एक चिट्ठी पडी थी। उसने उस चिठ्ठी को पढना शुरू किया..
उसमें लिखा था, ” मेरे प्रिय पुत्र ,तुमने हमेशा मेरे खराब चेहरे से नफरत की। जीते जी तो मैं तुम्हारे मुंह से दो प्रेम भरे शब्द सुनने के लिए तरसती रही लेकिन मैं नहीं चाहती कि मेरे मरने के बाद भी तुम्हारी नफरत बरकरार रहे इसलिए आज मैं अपने इस खराब चेहरे की असलियत तुम्हें बताती हूँ और उम्मीद करती हूं कि यह पत्र पढने के बाद तुम्हारी नफरत कुछ कम हो जाए शायद।
बेटा जब तुम 12 साल के थे तो मैं और तुम्हारे पापा तुम्हें लेकर घूमने जा रहे थे जहां हमारा एक्सीडेंट हो गया था । तुम्हारे पापा की मौत तुरंत हो गई थी और तुम्हें बचाते बचाते मेरे चेहरे पर काफी घाव बन गए थे। इसके बाद भी तुम्हें बहुत चोट आई जिसमे तुम्हारी एक किडनी चोटिल हो गई थी और एक आँख की रोशनी चली गई थी। उस वक्त मेरा तुम्हारे शिवा इस दुनिया में कोई नहीं था और मैं तुम्हें हर हाल में बचाकर अच्छी लाइफ देना चाहती थी।
तो मैने तुम्हें अपनी एक किडनी और एक आँख दे दी थी जिसकी वजह से लोग मुझे अंधी कहने लगे और तुम भी। अब बेटे की आंखों से भर भर के आंसू गिर रहे थे शायद उसे अब पता चल रहा था कि जिसे वह कुरूप और अंधी समझकर जीवन भर नफरत करता रहा वह तो देवी थी जिसे वह कभी पहचान ही नहीं सका। आज उसे एहसास हो रहा था कि लोग क्यों कहते हैं कि माँ के कदमों में जन्नत होती है।

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