कृष्ण बचाने आएंगे अब
दूर ये अपना वहम करो
हे भारत की द्रौपदियों अब
अपनी रक्षा स्वयं करो
याद करो धृतराष्ट्र का वो
दरबार जहाँ तुम रोई थी
आँखें खुली थी सबकी लेकिन
अन्तरात्मा सोई थी
एक से बढकर एक वीर थे
वैसे तो कहलाने को
पर कोई आगे ना आया
लुटती लाज बचाने को
तो फिर से सत्ताधारी इन
लोगों के भरोसे मत रहना
ये सदियों पहले भी चुप थे
आज भी है इन्हें चुप रहना
कब तक आस लगाओगी इन
मतलब की सरकारों से
चलो उठो मेंहदी की जगह
हाथों को भरो तलवारों से
हर इक दुस्सासन का सर
अपने हाथों से कलम करो
हे भारत की द्रौपदियों अब
अपनी रक्षा स्वयं करो