माता चन्द्रघण्टा कथा

 

बहुत समय पहले की बात है राक्षस कुल मे एक बहुत ही भयानक दैत्य हुआ जिसका नाम महिषासुर था। महिषासुर ने कठोर तप करके बहुत सारी शक्तियों को इकठ्ठा किया। पहले तो उसे वर प्रदान करने वाले देव समझते थे कि महिषासुर इन शक्तियों का प्रयोग राक्षसों की दशा सुधारने मात्र में ही करेगा लेकिन हुआ वही जो हमेशा होता है एक बार जब महिषासुर को शक्तियां प्राप्त हो गई तो उसकी महत्वाकांक्षा बढने लगी। उसने अपने राक्षस साम्राज्य को बढाने के लिए लोगों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। देवताओं की शक्तियों को क्षीण करने के लिए पूजा हवन यज्ञ आदि में व्यवधान डालने लगा। महिषासुर का अत्याचार इतना ज्यादा बढ गया कि चारों तरफ त्राहिमाम त्राहिमाम की चीखें निकलना शुरू हो गई। यहां तक भी ठीक था लेकिन महिषासुर की महत्वाकांक्षा इतनी बढ गई कि उसने स्वर्ग पर आक्रमण करके उस पर कब्ज़ा करने की योजना बना ली। इस योजना की भनक जैसे ही देवताओं को हुई वे डर के मारे कांपने लगे क्योंकि इस समय महिषासुर का मुकाबला करने का सामर्थ्य किसी भी देवता में बची नहीं थी। तभी नारद मुनि पहुंचे और उन्होंने सुझाव दिया कि यदि महिषासुर का मुकाबला करना है तो सभी देवताओं को मिलकर ब्रह्मा विष्णु और महेश के पास चलकर उपाय खोजना चाहिए।सभी देवता सहमत हो गए और पहुंच गए ब्रह्मा विष्णु महेश के पास।देवताओ ने अपनी सारी परेशानी बताई और यह भी बताया कि किस तरह से महिषासुर के अत्याचार से धरती पर हाहाकार मचा हुआ है। महिषासुर के अत्याचारों को सुनकर त्रिदेवों को बहुत क्रोध आया और इसी क्रोधाग्नि से एक देवी शक्ति का निर्माण हुआ । इस देवी शक्ति को सबने अपना अपना एक एक अस्त्र शस्त्र प्रदान किया।भगवान भोलेनाथ ने अपना त्रिशूल, भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन , सूर्य देव ने अपना तेज, तलवार और सिंह, और इंद्र ने एक घण्टा प्रदान किया। इस देवी के मस्तक पर चंद्र के आकार का घण्टा होने के कारण इनका नामकरण चंद्रघंटा के रूप में हुआ। इसके बाद माता चंद्रघण्टा ने धरती पर आकर महिषासुर को चुनौती दी।महिषासुर ने जब सुना कि उसे ललकारने वाली एक स्त्री है उसने माता चंद्रघण्टा का खूब उपहास बनाया और कहा कि मैं इस देवी को परास्त करके अपनी पटरानी बनाऊंगा और देवताओं को लज्जित करूंगा लेकिन उसे पता नहीं था कि यह स्त्री कोई साधारण स्त्री नहीं बल्कि खुद आदिशक्ति का रूप माता चंद्रघण्टा हैं। फिर क्या था महिषासुर और माता के बीच युद्ध हुआ और महिषासुर का वध हुआ। इस तरह माता चंद्रघण्टा ने  आमजन और देवताओं की रक्षा की।  जय माता चंद्रघण्टा की। माता चंद्रघंटा का रूप अलौकिक है। स्वर्ण की भांति चमकीला माता का शरीर, 10 भुजाओं वाला है। अस्त्र-शस्त्र से सुशोभित मैया सिंह पर सवार हैं। पूरी विधि-विधान से चंद्रघंटा माता की पूजा करने और कथा का पाठ करने से शरीर के सभी रोग, दुख, कष्ट आदि दूर हो सकते हैं।

नोट: यह जानकारी विभिन्न स्रोतों से ली गई है हम इन अलौकिक शक्तियों के सत्य/असत्य होने का दावा नहीं करते।किसी भी अन्धविश्वास को मानने से पहले अपने विवेक का इस्तेमाल करें।

 

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