माता कालरात्रि कथा और मंत्र

एक बार की बात है जब राक्षस कुल में तीन भयंकर दैत्य हुए जिनका नाम क्रमशः शुम्भ , निशुम्भ और रक्तबीज था। ये तीनों दैत्य इतने भयानक और बलशाली थे कि देवता भी इनके अत्याचारों से परेशान हो चुके थे। शुम्भ निशुम्भ को वरदान प्राप्त था कि उन्हें कोई भी पुरूष चाहे वह देवता ही क्यों न हो, नहीं मार सकता बल्कि इनकी मृत्यु किसी महिला के हाथों से हो। इन दोनों ने यह वरदान इसलिए मांगा था क्योंकि इनकी यह सोच थी कि जब पुरूष इन्हें नहीं मार सकते तो भला कोमल दिखने वाली महिला में इतनी हिम्मत कहाँ से आएगी जो इनका वध कर सके। बात यदि रक्तबीज की करें तो उसे भी एक अजीब सा वरदान प्राप्त था कि उसके खून की बूंद यदि धरती पर गिरती तो हर बूंद से एक नया रक्तबीज पैदा हो जाता। इस प्रकार के अद्भुत वरदानों के कारण दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था, तब इससे चिंतित होकर सभी देवता शिवजी के पास गए और उनसे रक्षा की प्रार्थना करने लगे। भगवान शिव ने माता पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा। शिवजी की बात मानकर माता पार्वती ने दुर्गा का रूप धारण किया । जब देवी पार्वती ने दुर्गा का रूप धारण किया तो उनका शरीर एकदम काला पड गया जिनको हम कालिका , काली या कालरात्रि के नाम से जानते हैं। माता दुर्गा की सुन्दरता देखकर शुंभ निशुम्भ के दो शिष्य चंड और मुंड मोहित हो गए और उन दोनों ने जाकर इसकी खबर शुंभ निशुम्भ को दी। शुम्भ निशुम्भ ने माता के पास संदेश भेजा कि या तो हम दोनों भाइयों में से किसी एक से विवाह कर लो या फिर मरने के लिए तैयार रहो। माता ने कह दिया कि मैं उसी से विवाह करूंगी जो मुझे युद्ध में परास्त करेगा। इसके बाद शुंभ और निशुम्भ  ने पहले तो चंड मुंड को भेजा जिनको मारकर माता चामुंडा कहलाईं। बाद में जब शुभ निशुम्भ लडने के लिए आए तो उनका वध करके माता दुर्गा ने देवताओं और निर्दोष प्रजा की रक्षा की। पहले महिषासुर और अब शुंभ निशुम्भ का वध एक महिला के हाथो से देखकर रक्तबीज बहुत क्रोधित हुआ और वह इसका बदला लेने के लिए युद्ध के मैदान में पहुंच गया।मां दुर्गा जितनी भी बार रक्तबीज का वध करती और उसका खून धरती पर गिरता, एक नया रक्तबीज पैदा हो जाता। अब माता ने महकाली यानि कालरात्रि का आवाहन किया उसके बाद पार्वती मां कालरात्रि के रूप में तांडव करती हुई एक हाथ से रक्तबीज का सर काटती रही और दूसरे हाथ से कटोरे में उसका खून रोप कर पीती रही। इस प्रकार माता कालरात्रि ने रक्तबीज का वध करके अपने भक्तों की रक्षा की।

।।जय माता कालरात्रि।।

नवरात्रि में सातवें दिन माता कालरात्रि की आराधना की जाती है।कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं। इसलिए दानव, दैत्य, राक्षस और भूत-प्रेत उनके स्मरण से ही भाग जाते हैं। ये ग्रह बाधाओं को भी दूर करती हैं और अग्नि, जल, जंतु, शत्रु और रात्रि भय दूर हो जाते हैं। इनकी कृपा से भक्त हर तरह के भय से मुक्त हो जाता है।अब आइए जानते हैं कि माता कालरात्रि को प्रसन्न करने का मंत्र कौन सा है।

मां कालरात्रि का मंत्र

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।

वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥

इस मंत्र को जो भी नर नारी जपता है भूत प्रेत और असुरी शक्तियां उससे दूर भागती हैं और माता की कृपा उस पर हमेशा बनी रहती है।

।।जय माता कालरात्रि।।

Disclaimer: उपरोक्त जानकारी विभिन्न स्रोतों से प्राप्त की गई है इसके सत्य असत्य होने का दावा हम नहीं करते और अंधविश्वास का समर्थन बिल्कुल नहीं करते। कृपया अपने विवेक का इस्तेमाल करें।

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