माता जब आठ वर्ष की थीं तभी उनके अंदर भगवान भोलेनाथ को पति के रूप में पाने की प्रबल इच्छा थी। किन्तु उनको यह पता नहीं था कि यह कैसे सम्भव होगा। चूंकि भोलेनाथ के विवाह में देवताओं का भी स्वार्थ था इसलिए देवताओं ने भोलेनाथ को प्राप्त करने में माता की सहायता की। देवताओं ने देवर्षि नारद को माता का मार्गदर्शन करने के लिए भेजा। नारद जी माता के पास पहुंचे और उन्हें बताया कि भोलेनाथ बहुत ही भोले है उन्हें प्राप्त करने का एक ही तरीका है वह तप। तपस्या के द्वारा यदि भोलेनाथ को प्रसन्न कर सको तो उन्हें पति रूप में पाने की आपकी लालसा अवश्य पूर्ण हो सकती है। फिर क्या था माता ने भोलेनाथ की आराधना करनी शुरू कर दी और बिना अन्न जल ग्रहण किए कई वर्षों तक भगवान शिव की तपस्या की। चूंकि माता बिना कुछ खाए पिए ही भोलेनाथ की तपस्या कर रही थी इसलिए उनका शरीर पूर्ण रूप से काला पड गया। कई वर्षों की तपस्या के बाद आखिरकार भोलेनाथ प्रसन्न हो ही गए और पहुंच गए माता के पास वरदान देने के लिए। वहां पहुंचकर देखा तो माता एकदम काली हो चुकी हैं। भगवान भोलेनाथ ने सोचा कि मेरी तपस्या की वजह इनका शरीर काला पड गया है तो मैं ही इसे ठीक भी करूंगा। भोलेनाथ ने अपनी जटा से माता गंगा को प्रवाहित करके माता को स्नान करा दिया। गंगा जल में भीगने के बाद माता का शरीर और मुख दूध की तरह गौर वर्ण का हो गया। एकदम श्वेत अर्थात गौर वर्ण के कारण ही माता महागौरी कहलाई। इस प्रकार माता महागौरी की उत्पत्ति हुई। महागौरी की उत्पत्ति के बारे में दूसरी कहानी भी है ।देवीभागवत पुराण के अनुसार, देवी पार्वती अपनी तपस्या के दौरान केवल कंदमूल फल और पत्तों का आहार करती थीं। बाद में माता केवल वायु पीकर ही तप करना आरंभ कर दिया था। तपस्या से माता पार्वती को महान गौरव प्राप्त हुआ है और इससे उनका नाम महागौरी पड़ा। माता की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनको गंगा में स्नान करने के लिए कहा। जिस समय माता पार्वती गंगा में स्नान करने गईं, तब देवी का एक स्वरूप श्याम वर्ण के साथ प्रकट हुईं, जो कौशिकी कहलाईं और एक स्वरूप उज्जवल चंद्र के समान प्रकट हुआ, जो महागौरी कहलाईं। मां महागौरी अपने हर भक्त का कल्याण करती हैं और उनको सभी समस्याओं से मुक्ति दिलाती हैं। नवरात्रि में आठवां दिन महागौरी की पूजा आराधना की जाती है। महागौरी की पूजा आराधना करने वाले नर नारी की समस्त मनोकामना पूरी होती है। आठवें दिन की पूजा देवी के मूल भाव को दर्शाता है। देवीभागवत् पुराण में बताया गया है कि देवी मां के 9 रूप और 10 महाविघाएं सभी आदिशक्ति के अंश और स्वरूप हैं लेकिन भगवान शिव के साथ उनके अर्धांगिनी के रूप में महागौरी सदैव विराजमान रहती हैं। इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। महागौरी की पूजा मात्र से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं और वह व्यक्ति अक्षय पुण्य का अधिकारी हो जाता है। ज्यादातर घरों में नवरात्र की अष्टमी तिथि के दिन कन्या पूजन किया जाता है वहीं कुछ लोग नवमी तिथि के दिन कन्या पूजन करते हैं।
महागौरी का ध्यान मंत्र :
श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।
या देवी सर्वभूतेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
।।जय माता महागौरी।।
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