माता सिद्धिदात्री कथा

ऐसी मान्यता है कि जब पूरा ब्रह्मांड घोर अंधेरे से भरा हुआ था कहा रोशनी की एक भी किरन नहीं थी तब एक छोटी सी रोशनी की  बूंद उत्पन्न हुई और धीरे धीरे विस्तृत होते हुए इस छोटी सी रोशनी ने विशालकाय रूप धारण करते हुए एक स्त्री का रूप लिया। इस अद्भुत स्त्री ने अपने प्रभाव से ब्रह्मा विष्णु और शिव को प्रकट करते हुए उनके कर्तव्य क्षेत्र बांट दिए और कहा निरंतर चिंतन और ध्यान के द्वारा वे उनका फिर आवाहन करे । त्रिदेवों ने ऐसा ही किया और फिर उनके मुखमंडल के तेज से देवी का प्रादुर्भाव हुआ जो सिद्धिदात्री कहलाई। इसके सम्बन्ध में एक और धारणा मिलती है कि जब असुरों ने देवताओं का जीना दुश्वार कर दिया था और स्वर्ग के सिंहासन पर कब्जा जमाने के लिए बार बार आक्रमण कर रहे थे तो सभी देवताओं ने मिलकर ब्रह्मा विष्णु और महेश से सहायता मांगी जिससे त्रिदेवों को असुरों के ऊपर बहुत क्रोध आया और इसी क्रोध की ज्वाला से जिस शक्ति का जन्म हुआ वही सिद्धिदात्री या आदिशक्ति या अन्य कई नामों से पुकारी गई ।देवीपुराण के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वे लोक में ‘अर्द्धनारीश्वर’ नाम से प्रसिद्ध हुए। मां सिद्धिदात्री के कई नाम हैं। इनमें अणिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, वाशित्व, सर्वकामावसायिता, सर्वज्ञत्व, दूरश्रवण, परकायप्रवेशन, वाक्‌सिद्धि, कल्पवृक्षत्व, सृष्टि, संहारकरणसामर्थ्य, अमरत्व, सर्वन्यायकत्व, भावना और सिद्धि शामिल हैं। कमल पुष्प पर विराजमान मां की 4 भुजाएं हैं। मां का वाहन सिंह है। सिद्धिदात्री मां की आराधना-उपासना कर भक्तों की लौकिक, पारलौकिक सभी तरह की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। मां अपने भक्तों की हर इच्छा पूरी करती हैं जिससे कुछ भी ऐसा शेष नहीं बचता है जिसे व्यक्ति पूरा करना चाहे। व्यक्ति अपनी सभी सांसारिक इच्छाओं, आवश्यकताओं से ऊपर उठता है और मां भगवती के दिव्य लोकों में विचरण करता हुआ उनकी कृपा का पात्र बनता है और फिर विषय-भोग-शून्य हो जाता है। इन सभी को पाने के बाद व्यक्ति के अंदर किसी भी चीज को पाने की इच्छा बाकी नहीं रह जाती है।नवरात्र में नौवां और आखिरी दिन माता सिद्धिदात्री का होता है इसलिए नवरात्रि में नवमी के दिन  माता के इस मंत्र या श्लोक का जाप करना चाहिए।

 या देवी सर्वभू‍तेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

 जिसका अर्थ होता है : हे मां! सर्वत्र विराजमान और मां सिद्धिदात्री के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे मां, मुझे अपनी कृपा का पात्र बनाओ।

।।जय माता सिद्धिदात्री।।

Disclaimer: उपरोक्त जानकारी विभिन्न स्रोतों से ली गई है इसके सत्यता/असत्यता का हम दावा नहीं करते।हम अंधविश्वास का विरोध करते हैं आप सब भी अंधविश्वास के सम्बंध में कृपया अपने विवेक का इस्तेमाल करें।

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