माँ कुष्मांडा की कहानी

ऐसा माना जाता है कि जब सृष्टि में कुछ भी नहीं था चारों तरफ घोर अंधेरा छाया हुआ था। न कहीं जीवन था और न ही जीवन का कोई आधार और न ही कोई ध्वनि। तब त्रिदेवों अर्थात ब्रह्मा विष्णु और महेश ने विचार किया कि क्यों न एक सुन्दर ब्रह्मांड का निर्माण किया जाए जिसमें जीवन हो , प्रकाश हो लेकिन सवाल यह था कि इतनी बडे ब्रह्मांड की रचना कैसे की जाए , ब्रह्मांड का निर्माण तो हो जाएगा लेकिन सबसे पहले ब्रह्मांड में फैले अंधेरे को नष्ट करना होगा। इसके लिए त्रिदेवों ने आदिशक्ति का आवाहन किया और उनको अपने विचार से अवगत कराया। तब आदिशक्ति ने अपने तेज से एक दैवीय शक्ति को प्रकट किया जिसने अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की और उसमे फैले अंधेरे को खत्म किया। ब्रह्मांड की रचना अपनी मुस्कान से करने के चलते देवी आदिशक्ति को मां कुष्मांडा कहा गया है, जिनकी महिमा दूर-दूर तक फैली है। देवी कुष्मांडा सूर्य लोक में वास करती हैं। ब्रह्मांड की रचना करने वाली मां कुष्मांडा के मुखमंडल पर उपस्थित तेज से सूर्य प्रकाशवान है। मां सूर्य लोक के अंदर और बाहर सभी जगहों पर निवास करती हैं।

नवरात्रि का चौथा दिन माता कुष्मांडा का दिन माना जाता है और इस दिन मां कुष्‍मांडा देवी की पूजा की जाती है। मां कुष्‍मांडा देवी की पूजा में पेठे का भोग लगाने का विशेष महत्‍व माना गया है। इसके साथ मां कुष्‍मांडा को पीला रंग सबसे प्रिय है। उनकी पूजा में पीले रंग के फल, फूल और मिठाई अर्पित करनी चाहिए। मां कुष्‍मांडा का स्‍वरूप बहुत ही दिव्‍य और अलौकिक माना गया है। मां कुष्‍मांडा शेर पर सवार रहती  हैं और इनकी आठ भुजाएं हैं । अपनी आठ भुजाओं में दिव्‍य अस्‍त्र धारण की हुई हैं। मां कुष्‍मांडा ने अपनी आठ भुजाओं में कमंडल, कलश, कमल, सुदर्शन चक्र आदि धारण की हुई हैं। मां का यह रूप हमें जीवन शक्ति प्रदान करने वाला माना गया है।मां कुष्‍मांडा 8 भुजाओं वाली दिव्‍य शक्ति धारण मां परमेश्‍वरी का रूप हैं। मान्‍यता है कि मां कुष्‍मांडा की पूजा करने से मानव के सभी अभीष्‍ट कार्य पूर्ण होते हैं और जिन कार्य में बाधा आती हैं वे भी बिना किसी रुकावट के संपन्‍न हो जाते हैं। मां कुष्‍मांडा की पूजा करने से भक्‍तों को सुख और सौभाग्‍य की प्राप्ति होती है। देवी पुराण में बताया गया है कि पढ़ने वाले छात्रों को मां कुष्‍मांडा की पूजा नवरात्रि में जरूर करनी चाहिए। मां दुर्गा उनकी बुद्धि का विकास करने में सहायक होती हैं।

स्तुति मंत्र:

 या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

ध्यान मंत्र:

 वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्। सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥

जो भी नर नारी माता कुष्मांडा के मंत्रों और नाम का जप करता है उसके जीवन के सभी दुख दूर होते हैं और घर शांति बनी रहती है साथ ही साथ सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

।। जय माता कुष्मांडा ।।

नोट: यह जानकारी विभिन्न स्रोतों से ली गई है हम इन अलौकिक शक्तियों के सत्य/असत्य होने का दावा नहीं करते।किसी भी अन्धविश्वास को मानने से पहले अपने विवेक का इस्तेमाल करें।

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