माता शैलपुत्री कथा

नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर दुर्गा देवी के नौ रूपों की पूजा-उपासना बहुत ही विधि विधान से की जाती है।ऐसा माना जाता है कि जो माता रानी की पूजा आराधना नौ दिनों तक करता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती है। नवरात्रि में माता रानी के नौ रूप माने गए हैं इन रूपों के पीछे तात्विक अवधारणाओं का परिज्ञान धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है। आज नवरात्रि का पहला दिन है और आज के दिन माता रानी के जिस रूप की पूजा की जाती है उसे शैलपुत्री कहते हैं। आइए आपको माता रानी के बारे में बताते हैं और उनसे सम्बंधित कथा भी सुनाते हैं।

 मां दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। हिमालय के वहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ शैलपुत्री।शैलपुत्री जैसा की नाम से स्पष्ट है शैल यानि पर्वत की पुत्री। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं। उनकी एक मार्मिक कहानी है।

एक बार की बात है जब प्रजापति ने एक यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया लेकिन भगवान भोलेनाथ शंकर को नहीं। अब यह बात देवी सती को अच्छी नहीं लगी फिर भी सती यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं। सती अपने माता पिता से यह पूछने के लिए जाना चाहती थी कि आखिर कौन सा कारण है जिसके लिए उन लोगों ने भगवान शिव को यज्ञ में नहीं बुलाया। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है। यदि कोई प्रश्न है तो वह यज्ञ समाप्ति के बाद जाकर पूछ सकती हैं लेकिन अभी नहीं । फिर भी सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। फिर क्या था सती बिन बुलाए मेहमान की तरह पहुंच गई यज्ञ के कार्यक्रम में। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव था। पिता प्रजापति दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्रोध आया । वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया। इस

तरह माता सती के दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं।  पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं।

दोस्तों माता शैलपुत्री की यह कथा जो कहता और सुनता है उसकी सभी मनोकामना पूरी होती है। इस कथा को दूसरो को सुनाना पुण्य का काम माना जाता है इसलिए इस कथा को सुनने के बाद इसे शेयर जरूर करें ताकि आपके माध्यम से किसी और को भी यह कथा सुनने का सौभाग्य प्राप्त हो सके।

जय माता शैलपुत्री।

नोट: यह जानकारी विभिन्न स्रोतों से ली गई है हम इन अलौकिक शक्तियों के सत्य/असत्य होने का दावा नहीं करते।किसी भी अन्धविश्वास को मानने से पहले अपने विवेक का इस्तेमाल करें।

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