स्कन्दमाता की कथा

प्राचीन समय में बज्रांग और बज्रांगी नामक एक दैत्य दम्पत्ति रहता था जिसका एक पुत्र हुआ तारकासुर। तारकासुर के मन में देवताओं के लिए शुरुआत से ही नफरत थी इसलिए उसने प्रण किया कि वह देवताओं से उनका स्वर्ग छीनकर अपने दैत्य साम्राज्य में मिला लेगा। इस सम्बन्ध में उसने गुरु शुक्राचार्य से विचार विमर्श किया तो शुक्राचार्य ने उसे तपस्या करके शक्तियां और वरदान प्राप्त करने का सुझाव दिया।फिर क्या था तारकासुर ने शिवजी की तपस्या करनी शुरू कर दिया।उसकी घोर तपस्या से ही पूरा स्वर्ग लोक हिलने लगा और सारे देवता परेशान हो गए और कोशिश करने लगे कि तारकासुर की तपस्या भंग हो जाए लेकिन तारकासुर अपने प्रण पर अडिग था। देवताओं ने भोलेनाथ से भी आग्रह किया कि वे तारकासुर को वरदान न दें लेकिन भोलेनाथ तो ठहरे भोलेभाले , वे अपने हर भक्त की सुनते हैं चाहे वह सुर हो या असुर। अंततः तारकासुर की घोर तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हो ही गए और पहुंच गए वरदान देने। तारकासुर से भोलेनाथ से अमर होने और सबसे शक्तिशाली होने का वरदान मांगा।भोलेनाथ ने कहा यह सम्भव नहीं है जो जन्मा है उसका मरण तो निश्चित है कुछ और मांगो। तारकासुर सोच में पड गया कि अब क्या मांगे। फिर उसने विचार किया कि भोलेनाथ की कोई संतान नहीं है।उसने कहा हे भोलेनाथ मुझे वरदान दीजिए कि मैं अब तक का सबसे शक्तिशाली राक्षस बन जाऊं और अगर मेरी मृत्यु हो तो सिर्फ आपके पुत्र से। भोलेनाथ ने कहा,तथास्तु। तारकासुर घर आया और अपने राक्षस साम्राज्य को बढाने की योजना में लग गया। धीरे धीरे करके उसने सम्पूर्ण धरती पर अपना अधिकार कर लिया । अब सभी राक्षस मिलकर आमलोगों पर अत्याचार करने लगे। अब तारकासुर ने देवताओं पर विजय पाने की सोची और स्वर्ग पर आक्रमण करने की योजना बनाने लगा। उसने आक्रमण करके समस्त देवताओं को अपना दास बना लिया। सारे देवता त्राहिमाम त्राहिमाम करते हुए ब्रह्मा जी के पास पहुंचे तो ब्रह्मा जी ने बताया कि तारकासुर को केवल शिवपुत्र ही परास्त कर सकता है इसलिए भोलेनाथ को मनाने की कोशिश कीजिए सब देवता मिलकर। सभी देवता पहुंच गए भोलेनाथ के पास तो देखा कि वे तो ध्यान में लीन हैं और उन्हें ध्यान से जगाने का मतलब है भस्म हो जाना। फिर भी कामदेव और रति ने अपना जीवन दांव पर लगाकर शिवजी का ध्यान तोडा तो शिवजी ने अपनी क्रोधाग्नि में कामदेव को ही भस्म कर दिया। अब सहारा था सिर्फ माता पार्वती का । माता पार्वती ने धैर्य से काम लिया और भोलेनाथ की आराधना में लीन हो गई फलतः भोलेनाथ ने आंखे खोली और माता पार्वती का आलिंगन किया जिससे कुछ समय पश्चात कुमार स्कंद यानि कार्तिकेय का जन्म हुआ। अब देवताओं को उम्मीद की किरन नजर आने लगी थी। अब सवाल यह था कि तारकासुर तो बेहद शक्तिशाली है उसका सामना छोटा सा कुमार स्कंद कैसे कर सकता है।तब माता पार्वती ने स्कंदमाता के रूप मे कार्तिकेय अर्थात स्कन्द को प्रशिक्षण देना शुरू किया और कुछ ही समय के पश्चात कार्तिकेय पूरी तरह से युद्ध कला में प्रवीण हो गए। फिर तारकासुर से युद्ध हुआ और कुमार स्कंद द्वारा उसका वध किया गया ।

।। जय हो स्कन्दमाता की।।

 देवी स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है।शास्त्रों में इनका काफी महत्व बताया गया है। इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। भक्त को मोक्ष मिलता है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है। अतः मन को एकाग्र रखकर और पवित्र रखकर इस देवी की आराधना करने वाले साधक या भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं आती है।

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