जब प्रजापति दक्ष के द्वारा अपमानित होने के बाद देवी सती योगाग्नि द्वारा अपने आपको भस्म कर लेती हैं तो महादेव का क्रोध अपनी चरमसीमा पर पहुंच जाता है और उन्होंने प्रजापति दक्ष के द्वारा आयोजित यज्ञ को ध्वंस कर दिया लेकिन इसके बाद भी महादेव का क्रोध शांत नहीं हुआ जिसके कारण समस्त सृष्टि में हाहाकार मचने लगा। सम्पूर्ण सृष्टि में प्रलय की स्थिति आ गई थी। दानवों की शक्ति अर्थात नकारात्मक शक्तियों की क्षमता बढती ही जा रही थी ।देवताओं की शक्तियां राक्षसों के सामने क्षीण होती जा रही थी। अब सिर्फ एक ही सहारा बचा था और वो थे महादेव। परंतु महादेव तो खुद देवी सती के वियोग में क्रोधित हुए बैठे थे तो किसी देवी या देवता की हिम्मत नहीं पड रही थी कि उनसे जाकर सहायता मांग सके। अब सभी देवताओं ने मिलकर महादेव के क्रोध को शांत करने के लिए आदिशक्ति का आवाहन किया । आदि शक्ति प्रकट हुई और उन्होंने सभी को आश्वासन दिया कि वह जल्द ही अवतरित होंगी और सबका कल्याण करेंगी। समय बीता और आदिशक्ति ने राजा हिमालय के घर मैना के गर्भ से जन्म लिया जिनका नाम पार्वती रखा गया। अब समस्या यह थी कि उन्हें इस बात का ज्ञान कैसे कराया जाए कि उनका जन्म किसलिए हुआ है । तब देवताओं ने नारद मुनि को देवी पार्वती के पास भेजा। नारद मुनि ने जाकर देवी पार्वती को महादेव को प्राप्त करने का सुझाव दिया और उन्हें इसके लिए तपस्या का मार्ग बताया। इसके बाद माता पार्वती ने प्रण लिया कि कितनी भी कठिन तपस्या करनी पडे वे महादेव को प्रसन्न करके रहेंगी। बस फिर क्या था देवताओं की योजना सफल हो रही थी। पार्वती ने नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या करना शुरू कर दिया। कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया। कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा- हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यह आप से ही संभव थी। तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं। यही है देवी माता ब्रह्मचारिणी की उत्पत्ति और नामकरण की कथा। माता ब्रह्मचारिणी की पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन की जाती है। मान्यता है कि देवी ब्रह्मचारिणी की आराधना करने वाले भक्त शीघ्र ही समस्त भोगों के सुख को भोग कर अपनी आत्मा का कल्याण करते हैं और ब्रह्म तत्व की प्राप्ति करते हैं। हमें भी माता की शरण प्राप्त हो ऐसी भावना भानी चाहिए। देवी दुर्गा के ब्रह्मचारिणी अवतार की कहानी हमें ये सीख देती है, कि तप, त्याग, सदाचार, परिश्रम और संयम का मनुष्य के जीवन में कितना महत्व होता है। मनुष्य अगर कठोर परिश्रम करते हुए अपना जीवन यापन करें, तो उसे अपने मनोवांछित फल की प्राप्ति अवश्य होती है। जिस प्रकार अत्यंत मुश्किल परिस्थियों में भी देवी ब्रह्मचारिणी ने अपनी तपस्या का पथ नहीं छोड़ा, उसी प्रकार मनुष्य को भी परिश्रम का पथ नहीं छोड़ना चाहिए।
नोट: यह जानकारी विभिन्न स्रोतों से ली गई है हम इन अलौकिक शक्तियों के सत्य/असत्य होने का दावा नहीं करते।किसी भी अन्धविश्वास को मानने से पहले अपने विवेक का इस्तेमाल करें।