माता कात्यायनी की कहानी

प्रचीन समय की बात है कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। महर्षि कात्यायन की परम इच्छा थी कि माता शक्ति इनके ऊपर अपनी कृपा दृष्टि करें । इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी। ऋषि कात्यायन की इच्छा थी कि माँ भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। इसी मनोकामना की पूर्ति के लिए ऋषि कात्यायन ने तपस्या करनी शुरू कर दी और एक दिन ऐसा आया कि माता की कृपा दृष्टि इनके ऊपर पड ही गई और माँ भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। ऋषि कात्यायन के घर में जन्म लेने के कारण ही इनको माता कात्यायनी कहा जाता है।सच पूछिए तो माता पार्वती का ही एक नाम कात्यायनी है। इसके पीछे भी एक कहानी है। जिस समय ऋषि कात्यायन माता भगवती को पुत्री के रूप में पाने के लिए तपस्या कर रहे थे उसी समय एक राक्षस जिसका नाम महिषासुर था , का अत्याचार के अपने चरम पर था। जिससे सारे देवता परेशान थे। तब ब्रह्मा विष्णु और महेश ने अपने तेज से एक शक्ति पुंज को प्रकट किया इस शक्ति को ऋषि कात्यायन ने अपने तपोबल से एक स्त्री में बदल दिया और माता भगवती के आदेशानुसार अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया । माँ कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा कालिन्दी-यमुना के तट पर की थी। ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में भी प्रतिष्ठित हैं।माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और भास्वर है। इनकी चार भुजाएँ हैं। माताजी का दाहिनी तरफ का ऊपरवाला हाथ अभयमुद्रा में तथा नीचे वाला वरमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। इनका वाहन सिंह है।

माँ कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है। नवरात्रि का छठा दिन माँ कात्यायनी की उपासना का दिन होता है। इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है व दुश्मनों का संहार करने में ये सक्षम बनाती हैं। इनका ध्यान गोधुली बेला में करना होता है। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में छठे दिन इसका जाप करना चाहिए।

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और शक्ति -रूपिणी प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ।

इसके अतिरिक्त जिन कन्याओ के विवाह मे विलम्ब हो रहा हो, उन्हे इस दिन माँ कात्यायनी की उपासना अवश्य करनी चाहिए, जिससे उन्हे मनोवान्छित वर की प्राप्ति होती है।

विवाह के लिये कात्यायनी मन्त्र–

ॐ कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि । नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नम:॥

माँ को जो सच्चे मन से याद करता है उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं। जन्म-जन्मांतर के पापों को विनष्ट करने के लिए माँ की शरणागत होकर उनकी पूजा-उपासना के लिए तत्पर होना चाहिए।

।। जय माँ कात्यायनी ।।

Disclaimer: हम उपरोक्त के सत्य या असत्य होने का दावा नहीं करते। हम अंधविश्वास को बढावा देना हमारा उद्देश्य नहीं है कृपया अपने विवेक का इस्तेमाल करें।

 

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