बस बन के वो नादान बैठे हैं

भरी महफिल में भी लेकर वो तीर कमान बैठे हैं

अजी  नादाँ  नहीं  बस  बन के वो नादान बैठे हैं


हमीं ने न दिया मौका उन्हें कोई जान लेने का

वरना कब से हमीं पर वो निशाना तान बैठे हैं


उधर वो बैठे हैं पूरी होती कुछ ख्वाहिशों के संग

इधर  हम  लेके  सुलगते  हुए  अरमान बैठे हैं


वो डरते हैं कहीं मुँह से मेरे सच न निकल जाए

तभी तो  देखो उनको कितना  परेशान बैठे हैं


सितम जो करना है उनको अरे शौक से कर लें

‘राज’ हम भी हथेली पे अब लेकर जान बैठे हैं


भरी महफिल में भी लेकर वो तीर कमान बैठे हैं

अजी नादाँ  नहीं  बस बन  के वो  नादान बैठे हैं