मेरे इस तन बदन में अब तक जान बाकी है
जीवन का शायद कोई इम्तिहान बाकी है
हर कर्ज उतारा है फिर भी चैन नहीं है क्यों
ऐ दिल बता क्या किसी का एहसान बाकी है
रह रह के उठ रही हैं क्यों जीने की ख्वाहिशें
शायद अभी भी दिल में कुछ अरमान बाकी हैं
इतनी जल्दी मुझको न मुजरिम कहो लोगों
अरे अभी तो इक बेवफा का बयान बाकी है
मेरे इस तन बदन में अब तक जान बाकी है
जीवन का शायद कोई इम्तिहान बाकी है