उफ ! ये मोहब्बत

कुछ इस तरह से मोहब्बत ने फँसाया हमको
न कभी गिरने दिया और न ही उठाया हमको
कश्मकश की डोरी में यूँ बाँधकर उसने रखा
न बसा दिल में मेरे न दिल में बसाया हमको
किसी जालिम के लिए रात दिन जले थे हम
आज दुनिया के लिए उसने बुझाया हमको
हमें छोडकर सब उसको पसंद हैं फिर क्यों
शिवा उसके कोई न आज तक भाया हमको
वो जो इम्तहान के नाम से भी डर जाता था
उसने हर कदम पे “राज” आजमाया हमको
कुछ इस तरह से मोहब्बत ने फँसाया हमको
न कभी गिरने दिया और न ही उठाया हमको

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