वो जिन्दगी महका गई

यूँ लगा जैसे ये नजरें अपनी मंजिल पा गयी

जब ये नजरें जाके उनके चेहरे से टकरा गयी

नाजुकी गालों की उसके देखकर गुल झुक गये

उसकी बोली सुन के कोयल बाग की शरमा गयी

मुझसे तो वो कुछ न बोली फिर भी आँखों से मुझे

अनकही बातों से कोई राज वो समझा गयी

इक हमीं पर न हुआ है उसके जलवों का असर

जिस गली मे भी गयी वो बिजलियाँ बरसा गयी

जा रहा है ग़म का पतझड़ जी रहा था जिसमें मैं

वो मिली है जब से जीवन मे बहारें आ गयी

एक दो पल ही रही नजरों के आगे वो मगर

एक दो पल मे ही मानो जिन्दगी महका गयी

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