तेरा इश्क सनम मुझको,दिन रात सताता है
कितना भी तुझे भूलूँ तू याद आ जाता है
सच बोलू सनम जब तू यूँ सजता सँवरता है
इक तीर मेरे दिल से रह रह के गुजरता है
हर दिन हँस कर दिल पे,तू बिजली गिराता है
तेरा इश्क. . . . . .
कोई बात करूँ तेरी ही बात निकलती है
दिल मेरा है पर इसपे बस तेरी ही चलती है
दिल मेँ रहकर दिल पे तू सितम क्योँ ढाता है
तेरा इश्क. . . . . .
रफ्तार मेरे दिल की रह रह के बदलते हो
अरमानों की कलियों को पैरों से कुचलते हो
इक बात बता खुद पर तू क्यों इतराता है
तेरा इश्क . . . . .
तेरा इश्क सनम मुझको दिन रात सताता है
कितना भी तुझे भूलूँ तू याद आ जाता है